साइको साइयाँ (Psycho Saiyan) एक ऐसी कहानी जो रिश्तों के जज़्बात के साथ आपको आत्माओं की दुनिया के सैर पर ले जाती है। रोमांच और रहस्य से भरी ये कहानी आपको आपको विवश कर देगी कहानी को ख़तम करने पर। Enjoy reading this horror and thriller love story
Psycho Saiyan – Horror Love Story in Hindi
रात के करीब बारह बजने वाले थे। मैं और मेरी पत्नी कविता एक शादी अटेंड करके घर आ रहे थे।
कविता मेरे पीछे बाईक पर ही बैठी थी और उसका एक हाथ मेरे कंधे पर था और वो कोई गाना गुनगुना रही थी पर चलती बाइक पर मुझे वो समझ नहीं आ रहा था की वो गाना कोन सा है । कुछ देर बाद हमारी मंजिल आती है और हम बाइक से उतर कर अपने घर के अन्दर जाते हैं और घर की लाइट ऑन करते हैं ।
” हा ! आज तो बहुत थक गए अजय ” कविता ने हांफते हुए कहा ।
हां आज का दिन ही कुछ ऐसा था। आज का दिन बहुत अजीब था है ना। मैंने कविता से पूछा।
अजीब कैसे मैं कुछ समझी नहीं। शादी में तो बहुत मज़ा आया पर थकान ने पूरे शरीर को जकड़ लिया है।” कविता ने जवाब दिया ।
” अरे मैं तुम्हारी बात थोड़ी कर रहा हूं। तुम्हारी तो ऐश थी आज कॉलेज के पुराने दोस्तों से मिलकर बहुत अच्छा लगा होगा तुम्हें।
” हां ! पर समय के साथ सब बदल चुके हैं।”
• और संजय।”
” संजय सबसे अलग था पहले भी और आज भी जब हम साथ पढ़ते थे तब भी वो ऐसा ही था और आज जब इतने दिनों के बाद मिले फिर भी उसमें कोई चेंज नहीं था।”
‘हां वो तो मुझे दिख ही रहा था कि कैसे उसने तुम्हें देखते ही अपनी बाहों में उठा लिया।”
जब मैंने कविता को ये बात कही तो उसने अजीब सी नज़रों से मुझे देखा और कहा।
” एक मिनट कहीं तुम्हें जलन तो नहीं हो रही अजय, की संजय मुझे शादी में सबसे ज्यादा अहमियत दे रहा था।”
ये कहकर वो हंसती है और फिर से कहती हैं । ” जा कर थोड़ा फ्रेश हो जाओ मेरे पति देव।
” इसमें हंसने की क्या बात है मुझे लगा तो मैंने बोल दिया।”
‘ठीक है! अब जाओ और जल्दी से फ्रेश होकर आओ आज घर पर कोई नहीं है क्या तुम ये मौका ऐसे ही गंवा दोगे।”
ये सुनकर में झट से अपने कपड़े उतार कर नहाने के लिए जाता हूं। क्योंकि कविता का रोमेंटिक अंदाज मुझे उसकी और आकर्षित करने में कामयाब हो चुका था।
कुछ देर बाद मैं वापस आता हूं और देखता हूं की कविता आईने के सामने खड़ी अपने बालों को सवार रही थी । वो आईने से अपनी शरारती नजरी से मेरी तरफ देखे जा रही।
मैं उसके करीब जाता हूं और उसे अपनी बाहों में लेकर कहता हूं।” तुम्हें पता है तुम जब भी किसी और के साथ होती हो या कोई तुम्हें छुने की कोशिश करता है तो मेरा मन करता है की मैं उसकी जान ले लूं।
‘अच्छा क्या इतना प्यार करते हो मुझसे।”
” तुम्हें क्या लगता है! क्या तुमने कभी किसी को देखा है मेरे जितना प्यार करते हुए।”
नहीं अबतक तो नहीं।
अब क्या ऐसे ही टाइम पास करना या कुछ …?
फिर मैं कविता को अपनी बाहों में उठाकर हमारे बिस्तर की और लेकर जाता हूं ।
कि तभी अचानक हमारे घर की डोर बेल बजती है।
इस वक्त कौन हो सकता है। कविता ने मुझसे पूछा।
‘मुझे क्या पता ! देखना पड़ेगा।”
मैं कविता को अपनी बाहों से नीचे उतारता हूं और दरवाजा खोलता हूं और दरवाजा खोलते ही मेरी आंखों पर तेज रोशनी पड़ती है और मेरी आंखें उस तेज रोशनी को सहन नहीं कर पाती। मेरी आंखें बंद हो जाती है और अचानक से कोई चीज मेरे सिर पर आकर टकराती है और मैं बेहोश होकर जमीन पर गिर जाता हूं।
आगे मैं नहीं जानता की क्या हुआ —-?
मेरी आंखें खुलती हैं तो मेरे सामने बस काला अंधेरा था, मुझे कुछ दिखाई क्यूं नहीं दे रहा आख़िरकार मैं कहाँ था। मेरे साथ ऐसा किसने किया, क्यूं किया, कविता कहाँ है, मैं कहां हूं, मन में बहुत से सवाल थे।
मैंने हिलने की कोशिश की पर में ज्यादा हिल नहीं पाया। शायद मैं किसी बंद बॉक्स में था। जो चारों और से बंद था पर मुझे सांस लेने में कोई दिक्कत नहीं हो रही थी शायद कोई छेद है इस बॉक्स में।
मैं चिल्लाता हूं…… कोई है …. कई बार चिल्लाता हूं। पर कोई फायदा नहीं होता।
तभी मुझे मेरे पैरों के करीब कुछ गीली और ढीली सी चीज होने का अहसास होता है। ये क्या हैं मेरे मन में फिर से सवाल दौड़ता है। मैं अपने पैरों से उसे छूकर देखता हूं। वो रस्सी की तरह लम्बी आकार की चीज थी पर क्या ! अब भी ये सवाल था।
अचानक वो अपने आप हिलती है मानो उसमे जान हो। कहीं ये सांप तो नहीं अब दिमाग में सवाल के साथ डर भी था। मैं फिर से ज़ोर ज़ोर से चिल्लाने लगता हूं। बचाओ…….कोई है!
पर खामोशी पहले की तरह ही छाई रहती है। अब मेरे पास बस दो ही रास्ते थे। पहला या तो सांप मुझे काट लें और मैं ऐसे ही हार मानकर पड़ा रहूं और दूसरा की मैं उस सांप को अपने पैरों से कुचल दूं।
मैंने दूसरा रास्ता चुना।
और जिस कोने में मुझे सांप होने का अहसास हुआ था मैं उस कोने में चिल्लाते हुए पुरी ताकत से अपने पैर को हथीयार बनाकर मारता रहता हूं पर कुछ देर बाद मुझे ये अहसास होता है की वहां तो कुछ नहीं है। तो क्या ये मेरा वहम था।
मेरी ये शंका तब दूर हो जाती है जब वो सांप मेरे पैर पर काट लेता है। दर्द इतना ज्यादा नहीं था पर डर दिमाग पर अचानक हावी हो गया। अब मैं करूं क्या, दिमाग काम करना बंद कर चुका था और सांसें धीरे धीरे तेज हो रही थी। क्या मैं मरना वाला हूं पर क्यूं मेरा कुसूर क्या है और मेरा अंजान दुश्मन कौन है।
सवाल बहुत से थे। पर जवाब देने वाला कोई नहीं।
मैं झटपटा रहा था और करता भी क्या एक सात बाई तीन का बॉक्स और उसमें मैं, खामोशी, अंधेरा और सांप ……?
कुछ देर बाद मैं शांत हो जाता हूं। या यूं कह लीजिए की शरीर में शायद सांप का जहर फैलने लगा था। शायद वक्त आ चुका था, मन में ऐसे ख्याल आ रहे थे। आंखें खुली थी पर उनके सामने अंधेरा था।
शरीर दिमाग और दिल हार मान चुके थे। मैं अपने परिवार और कविता को याद करके रोने लगता हूं और अपनी आंखें फिर से बंद कर लेता हूं।
कुछ देर बाद मुझे कुछ आवाज सुनाई देती जैसे कोई मिट्टी कुरेद रहा हो पर कौन !
आवाज धीमी से तेज हो रही थी। वो आवाज़ कुछ देर के बाद बॉक्स के बिल्कुल पास से आने लगती है। मैं चिल्लाता हूं। “प्लीज़ मेरी मदद करो मैं इस बॉक्स के अंदर हूं।”
कोई जवाब नहीं देता। बस किसी के हांफने की आवाज सुनाई दे रही थी।
पर किसकी ?
में फिर से पूरी ताकत लगाकर चिल्लाता हूं। “कौन है?”
तो मुझे एक कुत्ते के भौंकने की आवाज सुनाई देती है। शायद जिसकी आवाज मुझे सुनाई दे रही थी वो एक कुत्ता था। तो क्या मैं बॉक्स के साथ जमीन में गढ़ा हुआ था। ये हो सकता है।
कुछ देर बाद कुत्ते की आवाज भी आनी बंद हो जाती है। शायद वो जा चुका था वो अपने पेट को भरने के लिए जमीन में हड्डी तलाश कर रहा होगा पर बेचारा नाकाम रहा।
अब मैं क्या करूं! मैं अब तक सांप के काटने से मरा क्यूं नहीं। ये मेरी किस्मत थी या कुछ और!
मुझे कुछ तो करना होगा जिससे मैं इस क़ैद से बाहर आ सकूं।
मैं ज़ोर लगाकर अपने हाथों से बॉक्स को धकेलता हूं पर बॉक्स खोलने में नाकाम रहता हूं।
फिर पता नहीं मुझे क्या सुझता है। मैं अपने दोनों हाथों से बॉक्स को मुक्के मारने लगता हूं। दर्द हो रहा था जो आंखों से आंसू बनकर बह रहा था पर मेरे हाथों ने ठान लिया था की कामयाबी हासिल करनी है।
और होता भी यही है अचानक मेरे हाथ बॉक्स से बाहर निकल आते हैं। जो छेद मेरे हाथों से बने थे उनके अंदर से सूरज की रोशनी बॉक्स के अंदर पड़ती है । जिसे देखकर मन को चेन मिलता है। फिर मैं धीरे धीरे बॉक्स में हुए छेद को इतना बड़ा कर देता हूं जिसमें से में आसानी से निकल सकूं।
मैं बॉक्स के अंदर से उठने की कोशिश करता हूं पर शरीर मानो जमीन से बंधा हो उठा ही नहीं जा रहा था। मैं हिम्मत करता हूं और बॉक्स से बाहर आता हूं। बाहर आते ही तेज रोशनी मेरी आंखों पर पड़ती है और मेरी आंखें उन्हें सहन नहीं कर पाती और बंद हो जाती है। मैं कुछ देर वहीं पर बैठा रहता हूं और कुछ देर बाद अपनी आंखें खोलता हूं। अपने चारों तरफ देखता हूं ये तो कोई सुनसान जंगल था।
ये जगह कौन सी है मुझे पता करना था।
मैं खड़ा होता हूं और जंगल से निकलने के लिए आगे बढ़ता हूं। जमीन पर मेरे कदम ऐसे पड़ रहे थे मानो मैं कोई बच्चा हूं जो चलने की कोशिश कर रहा हो।
पर मैं बच्चा नहीं था। तो मैंने कुछ ही देर में अपने कदमों की चाल उसी तरह कर ली जिस तरह मैं हमेशा चलता था। और चलते चलते कुछ ही देर बाद मैं दौड़ने लगा और कुछ ही देर में जंगल से निकलकर एक सड़क पर आ पहुंचा। जो जंगल के करीब से गुजर रही थी। वो सड़क बिल्कुल सुनसान थी। अब मैं क्या करूं कुछ समझ नहीं आ रहा था की मुझे एक गाड़ी की आवाज सुनाई दी जो बिल्कुल मेरे तरफ ही आ रही थी। मुझे इस गाड़ी को रुकवाना चाहिए।
मैं अपने दोनों हाथों को हिलाते हुए रोड के बीचों-बीच खड़ा हो गया और गाड़ी के आने का इंतजार करने लगा। लेकिन मेंने देखा की गाड़ी उसी स्पीड में मेरी और आ रही है और धीरे धीरे वो बिल्कुल करीब पहुंच जाती है और मैं उसे अपने पास आते देख चिल्लाता हूं। “रूको!”
पर वो नहीं रूकती।
डर के मारे मेरी आंखे बंद हो जाती है और वो मुझसे टकरा जाती है।
जब मेरी आंखें खुलती हैं तो मैं देखता हूं की गाड़ी आगे निकल चुकी थी पर मैं अभी भी उसी जगह पर कैसे खड़ा हूं गाड़ी मुझसे टकराईं थी।
मैं ये सोच ही रहा था की गाड़ी के ब्रेक लगते हैं और वो अचानक सड़क के किनारे रूकती है। उसके अंदर से एक आदमी निकलता है।
मैं उसे आवाज देता हूं। ” हेलो ।”
पर उसकी तरफ से कोई जवाब नहीं मिलता।
वो बस अपनी कार के पास खड़ा रहता है। मैं भागकर उसके पास जाता हूं और उसे कहता हूं। ” हेलो भाईसाहब।”
लेकिन वो फिर कोई जवाब नही देता। वो मेरी तरफ देख भी नहीं रहा था।
फिर मैं उसे अपने हाथों से छूता हूं। मैं जो देखता हूं उसे देखकर मेरे पैरों तले से जमीन निकल जाती है। मेरा हाथ उसे छू नहीं पाता और उस आदमी के शरीर से ऐसे निकल जाता है जैसे मेरा हाथ मांस और हड्डियों का नहीं बल्कि हवा का बना हो।
ये क्या हो रहा है मेरे साथ | मुझे क्या हुआ है क्या मैं मर चुका हूं और आत्मा बन चुका हूं। नहीं नहीं ये सब फिल्मों में होता है।
मैं फिर से उस आदमी को छूता हूं और मुझे यकिन हो जाता है की अब मेरे पास मेरा शरीर नहीं है।
मेरा मन घबराने लगता है और सिर मानो अभी फटने वाला हो।
मुझे वापस वहीं जाकर देखना चाहिए जहां में दफ़न था। मैं उस और चल देता हूं पर मुझे ऐसा महसूस होता है की कोई मेरे पीछे पीछे आ रहा हो। मैं पीछे मुड़कर देखता हूं तो वो गाड़ी वाला आदमी एक सूटकेस लिए मेरे पीछे आ रहा था।
मैं वही रूकता हूं पर वो नहीं। वो मेरे शरीर से निकलते हुआ उसी ओर जा रहा था जिस ओर मैं दफन था। मैं भी उसके पीछे पीछे चलता रहता हूं और कुछ देर बाद वो वहीं पहुंच जाता है।
ये आदमी है कौन। क्या इसी ने मुझे मारा है पर क्यूं मैं इसे जानता तक नहीं हूं |
वो उस सूटकेस को जमीन पर रखता है और उस ओर देखता है जहां में दफन था। मैं जिस बॉक्स में था वो दिखाई दे रहा था। जंगली कुत्तों ने उसके ऊपर की मिट्टी को खोद दिया था। वो ज्यादा गहराई में भी नहीं दबा था।
वो ये देखकर मुस्कुराता है और अपनी जेब से एक सिगरेट निकालकर उसे पीने लगता है और उसे खत्म करके बॉक्स की और बढ़ता है। वो उसे खोलता है मेरा शरीर उस बॉक्स के अंदर था मैं खुद को ऐसे देख कर अजीब महसूस कर रहा था। और मैंने बॉक्स को तोड़ा था। लेकिन बॉक्स तो सही सलामत था।
वो आदमी मेरे शरीर से कहता है। ” कैसे हों! जिंदा हो ना । “
उसने ऐसा क्यूं कहा ।
Go To Psycho Saiyan Part – 2
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